जितेंद्र कुमार को बी-सैप का डीजी बनाया गया, बिहार सरकार ने 10 आईपीएस अधिकारियों को किया बड़ा पुनर्गठन

जितेंद्र कुमार को बी-सैप का डीजी बनाया गया, बिहार सरकार ने 10 आईपीएस अधिकारियों को किया बड़ा पुनर्गठन

बिहार सरकार ने जितेंद्र कुमार को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस (बी-सैप) का नया डीजी नियुक्त करते हुए एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव किया है। यह निर्णय पटना के गृह विभाग ने 2 अगस्त, 2025 को जारी किया, जिसमें 10 आईपीएस अधिकारियों के पदोन्नति और पुनर्नियुक्ति का ऐलान किया गया। जितेंद्र कुमार, जो 1993 की बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं, अब केंद्रीय नियुक्ति बोर्ड ऑफ कांस्टेबल (सीएसबीसी) के अध्यक्ष के साथ-साथ बी-सैप के डीजी का अतिरिक्त पदभार भी संभालेंगे। यह दोहरा जिम्मेदारी वाला पद बिहार की पुलिस व्यवस्था में एक बड़ा निर्णय है — जिसका उद्देश्य सुरक्षा और प्रशासन की दक्षता को बढ़ाना है।

क्यों हुआ यह बदलाव?

बिहार सरकार का मानना है कि पुलिस बल के विभिन्न इकाइयों में नेतृत्व का अंतर होने से संचालन में देरी हो रही थी। जितेंद्र कुमार को अब तक आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) के अतिरिक्त निदेशक (एडीजीपी) के रूप में देखा गया था, जहां उन्होंने गंभीर अपराधों की जांच में निरंतर सफलता प्राप्त की। लेकिन अब उनकी अनुभवी नेतृत्व की आवश्यकता बी-सैप के लिए बढ़ गई है — जो राज्य के 38 जिलों में आपातकालीन स्थितियों के लिए तैनात होता है। एक अधिकारी ने बताया, "उनकी जांच की शैली और निर्णय लेने की क्षमता बी-सैप के लिए बहुत जरूरी है, खासकर जब राज्य में चुनाव या बड़े विरोध प्रदर्शन होते हैं।"

कौन-कौन हुए नए पदों पर?

इस पुनर्गठन में कई अन्य आईपीएस अधिकारियों के पदों में बदलाव हुआ है:

  • अनुसूया रांसिंह साहू (2006 बैच), जो पहले सिविल सुरक्षा की आईजी थीं, अब प्रशिक्षण विभाग की आईजी बन गई हैं।
  • पंकज कुमार राज (2006 बैच), जिन्हें हाल ही में डीआईजी से आईजी पद पर बढ़ाया गया था, अब सिविल सुरक्षा के आईजी हैं।
  • राजीव मिश्रा (2010 बैच), जिन्हें पहले निषेध विभाग का डीआईजी दिया गया था, अब रेलवे पुलिस का डीआईजी हैं।
  • रशीद जमान (डीआईजी प्रशासन) को अब निषेध विभाग का अतिरिक्त डीआईजी भी दिया गया है।
  • अशिष भारती (बेगुसराय) को बी-सैप (उत्तरी डिवीजन, मुजफ्फरपुर) का अतिरिक्त डीआईजी नियुक्त किया गया।

इसके अलावा, मिथिलेश कुमार को आपातकालीन प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली (ईआरएसएस) का एसपी बनाया गया, जबकि कंतेश कुमार मिश्रा को सीआईडी (ई) का एसपी नियुक्त किया गया। एक और बड़ा बदलाव यह है कि ईआरएसएस के पूर्व एसपी विद्यासागर को बी-सैप 8 का कमांडेंट बनाया गया है — जो बेगुसराई में स्थित है।

बी-सैप क्या है और इसकी भूमिका क्या है?

बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस (बी-सैप) बिहार की एक अत्यंत तैयार और चुनिंदा सशस्त्र पुलिस इकाई है। यह आमतौर पर चुनावी हिंसा, बड़े विरोध प्रदर्शन, आतंकवादी खतरों और जिला स्तर पर गंभीर अपराधों के समय तैनात की जाती है। इसके अलावा, यह अन्य पुलिस बलों को समर्थन भी देता है। इस इकाई के अध्यक्ष का पद अक्सर अनुभवी आईपीएस अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नियुक्ति मानी जाती है — क्योंकि इसकी नेतृत्व शैली सीधे सार्वजनिक सुरक्षा पर प्रभाव डालती है।

पुनर्गठन का प्रभाव: क्या बदलेगा?

इस बदलाव का सीधा प्रभाव देखा जा सकता है तीन क्षेत्रों में — प्रशिक्षण, आपातकालीन प्रतिक्रिया और जांच। अनुसूया साहू के प्रशिक्षण विभाग में आने से पुलिस बल की तैयारी में नया दृष्टिकोण आएगा। जितेंद्र कुमार के बी-सैप के साथ जुड़ने से इस इकाई की रणनीति और अभियानों में अधिक निर्णायकता आएगी। वहीं, ईआरएसएस और सीआईडी के नए एसपी अधिकारियों के आने से जल्दी प्रतिक्रिया और जांच की गुणवत्ता में सुधार होगा।

लेकिन एक बात ध्यान देने लायक है — इस पुनर्गठन में मामता कल्याणी के सीआईडी (ई) एसपी पद से हटाए जाने का भी जिक्र है। उनका निकास अभी तक विस्तार से स्पष्ट नहीं हुआ है। कुछ स्रोतों के अनुसार, इससे जुड़े कुछ आपराधिक मामलों में देरी हुई थी, लेकिन यह अभी अनुमान है।

आगे क्या होगा?

आगे क्या होगा?

इस पुनर्गठन के बाद, बिहार सरकार के गृह विभाग का ध्यान अब दो चीजों पर है — पहला, इन नए अधिकारियों की नियुक्ति के तुरंत बाद उनकी अधिकारिता का दस्तावेजीकरण। दूसरा, बी-सैप के नए डीजी के नेतृत्व में राज्य के चुनावी और नागरिक अशांति के समय तैयारी का आकलन। अगले तीन महीनों में, बिहार में चुनाव के लिए तैयारी शुरू हो जाएगी, और यह नया नेतृत्व इस दौरान बहुत जरूरी होगा।

पृष्ठभूमि: बिहार की पुलिस नियुक्तियों का इतिहास

बिहार में पुलिस अधिकारियों के बीच पदोन्नति और पुनर्नियुक्ति का एक लंबा इतिहास है। 2017 में भी एक बड़ा पुनर्गठन हुआ था, जिसमें 12 आईपीएस अधिकारियों को बदला गया था — तब भी बी-सैप के डीजी के पद पर एक अनुभवी अधिकारी को नियुक्त किया गया था। लेकिन इस बार का बदलाव अलग है — क्योंकि यह पहली बार है जब एक अधिकारी को दो बड़ी इकाइयों (सीएसबीसी और बी-सैप) के नेतृत्व के लिए नियुक्त किया गया है।

सीएसबीसी, जिसका मुख्यालय 5 हार्डिंग रोड, पटना में है, राज्य में कांस्टेबल की भर्ती के लिए जिम्मेदार है। इसका अध्यक्ष अक्सर एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी नियुक्ति की प्रक्रिया में विश्वास बना हो। जितेंद्र कुमार के लिए यह दोहरा जिम्मेदारी वाला पद एक बड़ी जिम्मेदारी है — और इसकी सफलता बिहार की आने वाली नीतियों के लिए एक मापदंड बन सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या जितेंद्र कुमार के दोहरे पद वास्तव में कार्यक्षम हो सकते हैं?

हां, लेकिन इसके लिए उनकी टीम की दक्षता बहुत जरूरी है। जितेंद्र कुमार के पास दोनों संस्थानों (सीएसबीसी और बी-सैप) के लिए अलग-अलग अधिकारी होंगे। वह नीति और समीक्षा पर ध्यान देंगे, जबकि दैनिक संचालन उनके अधीनस्थ अधिकारियों पर निर्भर करेगा। ऐसे दोहरे पद पहले भी दिए गए हैं — जैसे 2022 में एक डीजी ने सीआईडी और रेलवे पुलिस का अतिरिक्त पदभार संभाला था।

इस पुनर्गठन से आम नागरिकों को क्या फायदा होगा?

जल्दी प्रतिक्रिया और बेहतर जांच के कारण आपातकालीन स्थितियों में नागरिकों को तुरंत सहायता मिलेगी। ईआरएसएस के नए एसपी के आने से 112 कॉल के जवाब का समय कम होगा। बी-सैप के नए डीजी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शनों को अधिक संयम से नियंत्रित किया जा सकता है — जिससे नागरिकों की सुरक्षा बढ़ेगी।

क्या इस पुनर्गठन में भ्रष्टाचार के मामले शामिल हैं?

कोई आधिकारिक जानकारी ऐसी नहीं है। लेकिन मामता कल्याणी के हटाए जाने के बारे में अफवाहें हैं कि उनके तहत कुछ मामलों में देरी हुई। बिहार सरकार ने इसे स्पष्ट नहीं किया है। ऐसे मामलों में अक्सर जांच बाद में शुरू होती है, लेकिन अभी कोई आरोप नहीं है।

इस बदलाव का चुनावी वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

चुनावों के समय बी-सैप की भूमिका अहम होती है। जितेंद्र कुमार के अनुभव और सीआईडी के साथ उनकी पिछली नियुक्ति के कारण, उनके नेतृत्व में चुनावी हिंसा को रोकने की क्षमता बढ़ सकती है। यह नियुक्ति स्पष्ट रूप से चुनावी तैयारी का हिस्सा है — जिसमें शांति बनाए रखने के लिए अनुभवी नेतृत्व की आवश्यकता है।

क्या यह पुनर्गठन बिहार के लिए एक नया मानक बन सकता है?

हां, अगर यह नियुक्ति सफल होती है, तो अन्य राज्य भी इस मॉडल को अपना सकते हैं — जहां एक अधिकारी भर्ती और सशस्त्र पुलिस दोनों को नियंत्रित करे। यह व्यवस्था लागत बचाने और समन्वय बढ़ाने में मदद कर सकती है। लेकिन इसके लिए एक मजबूत निर्णय लेने की प्रणाली और अधीनस्थ टीम की दक्षता जरूरी है।

क्या इन नियुक्तियों की शुरुआत तुरंत हो गई है?

हां, बिहार सरकार के नियमानुसार, ऐसी नियुक्तियां जारी होने के तुरंत बाद प्रभावी हो जाती हैं, जब तक कि कोई विशेष तिथि न दी गई हो। इसलिए, जितेंद्र कुमार और अन्य अधिकारी अब अपने नए पदों पर कार्यरत हैं। उनकी पहली बैठकें पहले ही शुरू हो चुकी हैं।